Sunday, 31 May 2015

पूरे योगदर्शन को यदि अति संक्षिप्त में वर्गीकरण करें तो तीन भागों में विभक्त कर सकते हैं : 1. चित्तवृति निरोध 2. स्वरूपस्थिति 3. ईश्वर प्रणिधान जो सर्वोच्च स्थिति है ,जैसा की आपने लिखा है कि जब प्रभु का भाव हमेशां ही मन में रहेगा तो वहाँ चिंता का कोई स्थान ही नहीं बचता,इसे ही ईश्वर प्रणिधान कहा है ,और यही भक्ति की पराकाष्ठ है । वैसे भी यदि प्रभु भाव मन में नहीं होगा तो चिंता का भाव भी अवश्य रहता है और चिंता चिता के सामान होती है जिसके अनेक दुष्परिणाम हैं