Friday, 19 June 2015

प्रेम , भाषा की दृष्टि से देखें तो परम् शब्द से बना है प्रेम । परम् का अर्थ है जिसमें कोई दूषितता न हो अर्थात् शुद्धतम् ,और सर्वोच्च , जिसकी कोई सीमा नहीं,या जो असीम है ।जिस चक्र का यहाँ वर्णन किया है उसका संस्कृत नाम है "अनहद" अर्थात् जिसकी कोई हद न हो या कोई सीमा न हो ,जो असीम हो ,यहाँ भगवन का निवास भी है।इसीलिए श्रीमद् भगवद्गीता के अध्याय -10 के श्लोक - 20 के द्वारा भगवन ने समझाया है कि :- अहमात्मा गुडाकेश सर्भूताशयस्थित: ।अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ।। अर्थात् हे अर्जुन ! मैं सभी प्राणीयों के हृदय में स्थित सबका आत्मा हूँ तथा सबका आदि, मध्य, और अंत भी मैं ही हूँ ।.......by Dr.Surendra Nath Panch Ji, on Anhad Chakra